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Sri Vishnu Pad Puja is not limited to any specific aspect; it is infinite in nature, as is the truth of Sri Vishnu Pad Puja. It can be any act of submission done truthfully, with faith and morality aligned with realized reality. Sri Vishnu Pad Puja is not just a chapter from a celestial cult but a truth from the inherent cult of the eternal self, and it is most compatible with the spirit to help in reaching the realm of beatitude. It is a chapter to invoke the self in truth with the gracious reality of Lord Vishnu, who is known as the Savior in all realms. Devotees often adore this chapter on specific occasions that facilitate the truth of events as a true guardian; Sri Ekadasi i
s a most suitable reality for this. The most essential prerequisite is simplicity of self with a sankalp (resolve) to indulge with fair participation. Modes and means may differ according to capabilities and the condition of the spirit in subjugation. Performing a formal Yajna in a sacrificial fire is a common practice of the day. Parikrama (circumambulation) of a Dharam Sthal (holy place) is another legendary chapter to attain gracious vibes. Performing truthful charity for a true cause may prove to be a milestone.
Above all, an eternal celebration with a mild smile in the name of beloved Vishnu could prove to be an effective oblation in the Yajna of the day, which is known as Sri Ekadasi. Even otherwise, Manasa Puja (worship through the mind) is taken as most sacred to immerse the self truthfully in the cult of the day."
Sri Ekadasi ensures its earnest devotees are safeguarded in five most relevant aspects:
- Ensuring social safety
- Ensuring safe shelter for refuge
- Ensuring help in fair livelihood
- Ensuring spiritual evolution
- Ensuring safe passage at the time of transition
श्री माँ के असंख्य रूप व् गुण है पर माँ का मूल स्वरुप जीव का वस्तुतः कल्याण है
श्री माँ लक्ष्मी को विविद नामो व् स्वरूपों से जाना जाता है
माँ धन लक्ष्मी
माँ धान्य लक्ष्मी
माँ ऐश्वर्य लक्ष्मी
माँ अधि लक्ष्मी
माँ विजया लक्ष्मी
माँ गज लक्ष्मी
माँ वीर लक्ष्मी व्
माँ संतान लक्ष्मी
सभी देवता एक मत से गणपति की पूजा उपरांत श्री माँ लक्ष्मी की उपासना करते है
देवता ही नहीं स्वयं भगवान् विष्णु भी बहुत प्रकार से श्री श्री लक्ष्मी उपासना को रूप देते है
सृष्टि के पालन में श्री माँ लक्ष्मी ही भगवान् विष्णु की परम सहायक है
लक्ष्मी हीन जीव की कल्पना मात्र नीरस स्वरुप को ही प्रगट करती है
लक्ष्मी युक्त जीवन वैभव युक्ति का परिपूर्ण सूचक है,
लक्ष्मी के अभाव में जीव जीवन यात्रा को पूर्ण रूप से सार्थक नहीं कर सकता,
ऋषि मुनि भी लक्ष्मी पूजन के उपरांत ही योग बल के धनि होते है जो ब्रह्म प्राप्ति का मूल साधन है
पोष माह की सक्रांति में रजा मनु ने लक्ष्मी पूजन कर अपने मूल तत्व को प्राप्त किया
चैत्र माह में भगवान् श्री हरी विष्णु ने लक्ष्मी पूजन कर सृष्टि को रूप दिया व् तभी से कार्तिक माह में लक्ष्मी पूजन को गति प्रदान की, जो अनंत फल दाई है
ब्रह्मा जी ने भद्र पद माह शुक्ल पक्ष में लक्ष्मी पूजन कर ज्ञान से स्वयं को परिपूर्ण किया व् लामी पूजन की गति को सर्वमय रूप दिया
देव ऋषि नारद ने हर माह की लक्ष्मी पूजा कर भगवान् श्री हरी विष्णु का सामीप्य प्राप्त किया
शिव भक्त कुबेर ने कार्तिक लक्ष्मी पूजन कर धन पति कुबेर का पद प्राप्त किया
पञ्च पांडव लक्ष्मी पूजन कर ही कृष्ण कृपा के पात्र हुए
देव राज इन्द्र ने लक्ष्मी पूजन कर अमरावती को प्राप्त किया था
देव राज इन्द्र ने लक्ष्मी पूजन पूजन कर वैभव की परिपूर्ण सीमा शुची को प्राप्त किया था
लक्ष्मी पूजन ही श्री हरी विष्णु प्राप्ति का अचूक व् सुगम साधन है
जीव की मूल संज्ञा की अधिष्ठित देवी लक्ष्मी की शरण में आकर ही जीव स्वयं का सामीप्य प्राप्त करता है,
श्री श्री भगवती लक्ष्मी भगवान् विष्णु की अर्धांगिनी, अध्याशक्ति व् वैभव की अधिष्ठित देवी है
श्री लक्ष्मी जी का उद्गम समुद्र मंथन के 14 रत्नों के रूप में हुआ था पर श्री लक्ष्मी जी अदि स्वरुप व् स्वयं में अनंता है
दिनों में शक्रवार महालक्ष्मी के वार रूप में जाना जाता है
पक्षों में शुक्ल पक्ष ही ग्राह्य है यद्धपि दिवाली पूजन अमावस्या को होता है क्यों की यह साधारण पूजा नहीं अतार्थ विशेष साधना का दिन है कार्तिक अमावस्या
भाव सहित की गई पूजा परम फल दाई मानी जाती है
धन दाई माँ लक्ष्मी मात्र धन ही नहीं, वैभव सुख समृद्धि यश कीर्ति व् सहवास के सुख को भी सत्मय रूप देती है
धन हीन जीवन की कल्पना भी दुःख दाई होती है धनमय जीवन ही सत्यम शिवम् सुन्दरम की गति को प्राप्त होता है
धन के सदुपयोग से ही माँ लक्ष्मी की असीम कृपा प्राप्त होती होती है
श्री माँ सदेव ही शुभ लाभ की दात्री है
नमोअस्तुते महामाये श्री पीठे सुरपूजिते
शंख चक्र गदाहस्ते महालक्ष्मी नमोअस्तुते
पद्मासन स्थिते देवी महा लक्ष्मी स्वरूपिणी
सर्व पाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोअस्तुते
स्वेताम्बर धरे देवी नाम्नालाद्कार भूषिते
जगास्थिते जग्तामा महालक्ष्मी नमोअस्तुते
हे विश्व प्रिये देवी श्री लक्ष्मी जी आप ही
पधनना
पद्यनि
पद्यावहिनी
पद्यप्रिया
पद्यवल है
हे विश्व प्रिये देवी लक्ष्मी जी आप ही सभी को धन वैभव सौभाग्य संपन्नता प्रदान करने वाली श्री माँ है
हे विश्व प्रिये देवी श्री लक्ष्मी जी आप ही समस्त कामनाओ को पूर्ण करने वाली वाली करुणामई माँ है
हे विश्व प्रिये देवी श्री लक्ष्मी जी आप ही
अग्नि धन
वायु धन
सूर्य धन
जल धन
बृहस्पति धन
वरुण धन है
हे विश्व प्रिये देवी श्री लक्ष्मी जी आप ही भगवान् विष्णु कि धर्मपत्नी है आप ही छमा रूपा है आप ही सबकी सुहृद्य है
हे विश्व देवी श्री लक्ष्मी जी आप चन्द्र प्रभा सदृश है आप ही सूर्य सदृश प्रकाशवान है आप ही अग्नि सदृश आप ही ही तेनो कि संयुक्त आभा है
हे विश्व प्रिये श्री देवी लक्ष्मी जी आप ही भक्तो को श्री, तेज, आयु, आरोग्य, धन धान्य पशु व् बहु पुत्र लाभ देने वाली करुणामई माँ है
जय महालक्ष्मी माँ
विष्णु विष्णु विष्णु
भगवान् श्री हरि विष्णु की जय
O Devi, we bow before you, who are yourself a good fortune in the dwellings of the virtues and ill fortune in those of the vicious, intelligence in the hearts of the learned, faith in the hearts of the good, and modesty in the hearts of the high-born, may you protect the universe,
Obeisance to you Mother, Please accept my humble homage
I resort to Mahalakshmi, the destroyer of Mahisasura who is seated on the lotus, is of the complexion of the coral, and holds a rosary, axe, mace, arrow, thunderbolt, lotus, bow, pitcher, rod, shakti, sword shield, conch, bell, trident, noose, and the discus Sudarshan,
विष्णु विष्णु विष्णु
विष्णु विष्णु विष्णु
विष्णु विष्णु विष्णु
भगवान् श्री हरि विष्णु की जय