ॐ परमात्मने नमः

ॐ श्री गणेशाय नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि-तन्नो नारायणः प्रचोदयात
ॐ शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभांगम लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्

मंगलम भगवान् विष्णु मंगलम गरुड़ ध्वज मंगलम पुण्डरीकश्चम मंगलाय तनोहरी

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

नील सरोरुह नील मनि नील नीरधर स्याम- लाजहिं तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन। करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि। महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

यन्मायावशवर्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा
यत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः
यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां
वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्‌

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्‌
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्‌

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

हरि गुन नाम अपार कथा रूप अगनित अमित
हरि अवतार हेतु जेहि होई- इदमित्थं कहि जाइ न सोई
हरि अनंत हरि कथा अनंता- कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता

हरिमायाँ मोहहिं मुनि ग्यानी

सुर नर मुनि कोउ नाहिं जेहि न मोह माया प्रबल
अस बिचारि मन माहिं भजिअ महामाया पतिहि

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

ब्रह्माँ सब जाना मन अनुमाना मोर कछू न बसाई
जा करि तैं दासी सो अबिनासी हमरेउ तोर सहाई

धरनि धरहि मन धीर कह बिरंचि हरि पद सुमिरु
जानत जन की पीर प्रभु भंजिहि दारुन बिपति

बैठे सुर सब करहिं बिचारा। कहँ पाइअ प्रभु करिअ पुकारा
पुर बैकुंठ जान कह कोई। कोउ कह पयनिधि बस प्रभु सोई

जाके हृदयँ भगति जसि प्रीती। प्रभु तहँ प्रगट सदा तेहिं रीती
तेहिं समाज गिरिजा मैं रहेऊँ। अवसर पाइ बचन एक कहेउँ

हरि ब्यापक सर्बत्र समाना। प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना
देस काल दिसि बिदिसिहु माहीं। कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाहीं

लक्ष्मी के धव यानि पति होने से माधव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु

आत्म स्वरुप होने से हिरण्यगर्भ देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु

ध्यान योग व् मोन गति से प्राप्त होने वाले देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु

योगमाया के आवृत होने के कारन प्रत्यक्ष प्रगट नहीं हो कर भी भक्तवत्सल देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

पृथ्वी को जल व् आकाश को वायु , वायु को आकाश से निवोदित करने वाले देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

संसार की उत्पत्ति के मूल साधन देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

भूत भव्य व् भवतः प्राणियो के नाथ परम पावन देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

छह विकारो से रहित अच्युत प्राण के प्राण जीव के जीव देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

छह शोकादि उर्मियो से रहित संसार सागर से तारने वाले देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

जिसकी आज्ञा से सूर्य चन्द्र आदिग्रहगण अद्रश्य बंधन से बंधे हुए कर्म गति को प्रभावित करते है

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

कमल से अक्ष होने के कारन अरविन्द कहलाने वाले देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

पुरातत्व की परिपूर्ण सीमा होने के कारन वृद्धआत्मा कहलाने वाले देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

अमृत रूप में बहने वाले व् वायु रूप में विचरित धर्मधारी यजमान देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

बदरिकाश्रम में नर नारायण रूप में स्थित हो मन व् इन्द्रियों की एकाग्रता हेतु तप करने वाले देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

श्रुतिया व् स्म्रतिया जिसकी आज्ञा स्वरुप हो वह देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

मन के वेग से कई गुना अधिक वेग धारी आत्मा के अधिपति देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

न्याय के अधिपति देव न्याय मूर्ति व् न्याय के कारणभूत

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

यज्ञमूर्ति व् शिपिविष्टि एवं तेजस्वियो का तेज स्वरुप देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

धर्म ज्ञान व् वैराग्य की परिपूर्ण मूर्ति देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

सात्विक भक्तो की कामनाओ को पूरा करने वाले अत्यंत रूपवान देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

वाक् व् विद्या के अधिपति देव जो सत्य परायण है

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

सभी तत्व जिस नर से अत्पन्न हुआ वह नारायण भगवान्

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

जिनका अन्तः कारन राज व् तम से दूषित नहीं होता वह देव जो प्रसंनात्मा है

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

संसार सागर को सहजता से पार करने हेतु परम सेतु है देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

सहज ही धन देने वाले परम देव होने के कारन वासु रूपेण अन्तरिक्षवासी

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

जो स्वास रूप में प्राणियो को चेष्ठा करते है वह सहस्त्रपात सहस्त्रमूर्धा व् सहस्त्रअक्ष है

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

जिनके वक्ष स्थल में कभी न नष्ट होने वाली श्री निवास करती है वह देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

जिसे प्राप्त किये बिना ही मन सहित वाणी लोट आती है वह

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु

भगवान् जो साधुओ का प्रेम पूर्वक पालन करते है सत्यकाम व् सिद्धार्थ स्वरुप

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

समरण स्तुति व् पूजन करने वालो पवित्र करने वाले देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

जिनके चेष्ठा मोध कभी व्यर्थ नहीं जाती वह देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

सच्चिदानंद व् अनायास ही सब कर्म करने वाले भगवान्

विष्णु विष्णु विष्णु-भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

समस्त भूतो के सार भूत व् वेदांतवेद्ह्य एवं बुद्धि साक्षी भगवान्

विष्णु विष्णु विष्णु-भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

जन्म परिक्रिया से रहित रूप धारण करने वाले देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

रूद्र काल मृत्यु व् जीव चार विभूतियों के अधिष्टित देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

जिस में सब जीव मर कर प्रविष्ट होते है वह नर नारायण ही है

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

यदपि अव्यक्त तब पर भी आत्म भाव में स्थित हो जीव के मोक्ष को रूप देने वाले देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

ब्रह्माण्ड के समस्त लोको के अधिष्ठित देव व् कारन भूत देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

जिन श्री प्रभु के नाम मात्र से देत्य सेना तितर बितर हो जाती है वह देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

ब्रह्म सत्य ज्ञान अनंतरूप आत्मा व् परमात्मा स्वरुप देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

जो ज्ञानमय तप के अधिष्टित देव है व् जिनका एश्वर्य ही तप का उद्गम स्थान है वह देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

वाणी के दाता, सदेव पवित्र व् पवित्रता के दानी, परम नित्य व् स्थिर देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

धर्म की स्थापना के लिए प्रत्येक युग में अपनी से रुपे ग्रहण करने वाले देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

अन्तः कारन में स्थिन प्रकाश पुंज जो जीव की चेतना व् नित्य शांति का मूल है वह देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

हृदये कमल में व्याप्त सदेव जीव के कल्याण कारी देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

किसी भी माप से परिछेद न किया जाने वाले अमेयात्मा

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

समस्त प्राणियों का केंद्र बिन्दु आदि मध्य व् अंत, ब्रह्मण स्वान व् चंडाल में सम दृष्टि रखने वाला देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

जिस प्रकार समस्त जगत का प्रकाशक एक सूर्य है उसी प्रकार समस्त जीवो की अंतरात्मा एक ही

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

भगवान् विष्णु से रहित कुछ भी नहीं पर भ्रांतदृष्टि पुरुष आत्मभेद से ग्रसित उन्हें पहचानते नहीं वह

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

सर्व भूतो के नियंता, परम के दाता व् प्राण में चेष्टा के कारन भूत देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु

सदेव देह धारण परिक्रिया में जरामुक्त व् मायापति भगवान्

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु

अनंत नेत्र वाले और भय को भयभीत करने वाले लाल नेत्र धरी लोहिताक्ष

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु

पृथ्वी का जल से उद्धार करने वाले देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

प्रलय काल में प्राणियों के वेदना को समझाने वाले देव प्रभूत

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु

जिसके वक्ष स्थल में सदा ही श्री का वास रहता है वह देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

जो अपनी माया से स्वयं को मोहित कर द्वेतरूपमाया के कारन अपने गुणों का अनुभव करते व् कराते है वह देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

जो देव धर्म की स्थापना हेतु सभी युगों में प्रगट होता है

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

जो दुष्टों का नाश व् साधुओ की रक्षा के लिए अपनी इच्छा से गर्भ्दुखो के बिना ही उत्पन्न होता है

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

पृथ्वी व् आकाश जिस देव में व्याप्त है

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

जो आत्मा के सत्य का साक्षी है वह परम देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

सर्व भूतो में स्थित व् एक अवं एकाकार, कारक रूप व् मोह रहित देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

अनंत अथार्थ शेषनाग आदि के रूप में प्रथ्वी को धारण करने वाले धाता

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

जिसके नाम का विवश होकर भी कीर्तन करने से जीव पाप मुक्त हो जाता है वह देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

जो स्वयं में मार्ग भी व् मंजिल भी, ब्रह्म भी एवं सत्य भी, जो उपासना भी व् उपासक भी उन देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

सुषुप्ति में ब्रह्मभाव,स्वप्न में बिना इन्द्रियों के भोग व् जाग्रत अवस्था में विषय का अधिपति देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

जो ॐ स्वरुप में ब्रह्म ॐ में ही आत्मा ॐ में ही सत्य व् ॐ में ही सर्वस्व है वह देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

जो महारिषियो में भ्रगु वाणी में एकाक्षर यज्ञ में जपयज्ञ स्थावारो में हिमालय परमब्रह्म देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

कल्प के आदि व् अंत को अपनी संकल्प शक्ति से उसमे प्रगट हो कर रूप देने वाले देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

सुमिरन मात्र से जो कमल नयन जीव को बाहर व् भीतर से विशुद्ध करता है उन देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

जिसकी कृपा से मानव आत्मज्ञान प्राप्त कर दुःख व् शोक से मुक्त हो जाता है

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

समस्त विद्याओ के परम प्रकाशक व् सभी प्राणियो के प्रवृत कर्ता देव

विष्णु विष्णु विष्णु-भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

मन से मनन नहीं किया जाता अपितु जिसके कारन से मनन किया जाता है वह देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

जिस देव की एक द्रष्टि मात्र से जीव की समस्त ह्रदये ग्रंथि छूट जाती है उन देव

विष्णु विष्णु विष्णु-भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

जिसकी कृपा मात्र से भूतात्मा इन्द्रियात्मा प्रधानत्मा आत्मा व् परमात्मा का बोध होता है वह

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

जिनके सुमिरन से भय रुपी त्रास स्वतः ही लुप्त हो जाता है उन देव

विष्णु विष्णु विष्णु-भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

असख्य तीर्थ करो या सहस्त्र गंगा स्नान जिस देव के एक बार सुमिरन तुल्य है वह

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

जन्म मृतु व् जरा जडित जीवन अन्धकार है व् इसको सुशोभित करने वाला प्रकाश है

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

जिसके ज्ञान मात्र से ही आनंद स्वरुप मोक्ष प्राप्त होता है उन देव

विष्णु विष्णु विष्णु-भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

कलियुग की दुष्कृत व् विकल यातनाओ से मुक्ति हेतु शरणागतवत्सल देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

जैसे अग्नि को शांत करने हेतु जल, अन्धकार को दूर करने हेतु प्रकाश वैसे ही पाप के नाशक

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

भक्ति युक्त हो जिनकी पूजा अर्चना व् ध्यान करने से जीव दुखो से छूट जाता है वह देव

विष्णु विष्णु विष्णु-भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

जिसके चिंतन मात्र से स्वर्ग ब्रह्मा लोक व् मोक्ष स्वयं भक्त के सामीप्य को प्राप्त होते है वह देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

छह भाव विकारो से मुक्त सर्व व्यापक व् सभी लोको के स्वामी व् दुखो के नाशक देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

जो सभी लोक परलोक व् जीव के भीतर स्थित हो कर शासित करता है वह देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

जो सभी का प्रकाशक चन्द्रमा तारागन व् सूर्य को भी रश्मियो से सुशोभित करता है वह देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

जिसके भय से सूर्य इन्द्र अग्नि वायु जल मृत्यु सभी नियत कर्म गति को प्राप्त है वह देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

अविनाशी प्रभु विशुद्ध हृदये प्राणियो के ह्रदय पटल पर प्रगट हो उन्हें बंधन मुक्त करते है वह

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

सर्वत्र सामान भाव रखना ही श्री अच्युत की आराधना का एक विशेष रूप है

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

जैसे धातुओ को अग्नि पिगला देती है वैसे ही श्री हरी का नाम समस्त पापो को पिगला देते है

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

सत युग में ध्यान,त्रेता में यज्ञ द्वापर में पूजा व् कलि में जिसके नाम जाप से मुक्ति संभव है वह

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

संसार के समस्त धर्मो के प्रवर्तक, परम सत्य व् समस्त भूतो का उत्पत्ति स्थान-वह देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

जगत की रचना करने वाले इश्वर, लोक व् जीव की शक्ति के प्रवर्तक परमार्थ सत्य देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु की जय

जो देव स्वयं में परिपूर्ण व् पवित्र एवं तिर्थादिको को पवित्र करने वाला, पापो का परम विनाशक वह

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

मोक्षदाताजो अपने भक्तो को सर्वदा रूप आरोग्य भोग्य व् सम्पूर्णता प्रदान करते है वह देव

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

जिस देव की सहस्त्र जाप अस्तुति जीवन के समस्त मूल्यों हेतु परम कल्याण कारी है

विष्णु विष्णु विष्णु भगवान् श्री हरि विष्णु जी की जय

Friday, August 24, 2007

Bhagwaan Sri Hari Vishnu


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Sri Vishnu Pad Puja is not limited to any specific aspect; it is infinite in nature, as is the truth of Sri Vishnu Pad Puja. It can be any act of submission done truthfully, with faith and morality aligned with realized reality. Sri Vishnu Pad Puja is not just a chapter from a celestial cult but a truth from the inherent cult of the eternal self, and it is most compatible with the spirit to help in reaching the realm of beatitude. It is a chapter to invoke the self in truth with the gracious reality of Lord Vishnu, who is known as the Savior in all realms. Devotees often adore this chapter on specific occasions that facilitate the truth of events as a true guardian; Sri Ekadasi i

s a most suitable reality for this. The most essential prerequisite is simplicity of self with a sankalp (resolve) to indulge with fair participation. Modes and means may differ according to capabilities and the condition of the spirit in subjugation. Performing a formal Yajna in a sacrificial fire is a common practice of the day. Parikrama (circumambulation) of a Dharam Sthal (holy place) is another legendary chapter to attain gracious vibes. Performing truthful charity for a true cause may prove to be a milestone.

Above all, an eternal celebration with a mild smile in the name of beloved Vishnu could prove to be an effective oblation in the Yajna of the day, which is known as Sri Ekadasi. Even otherwise, Manasa Puja (worship through the mind) is taken as most sacred to immerse the self truthfully in the cult of the day."

Sri Ekadasi ensures its earnest devotees are safeguarded in five most relevant aspects:

  • Ensuring social safety
  • Ensuring safe shelter for refuge
  • Ensuring help in fair livelihood
  • Ensuring spiritual evolution
  • Ensuring safe passage at the time of transition





भगवान् श्री हरि  विष्णु की माया रूपेण श्री माँ लक्ष्मी जो श्री प्रभु की परम सहायक है इस ब्रह्माण्ड की रचना में उन श्री महा लक्ष्मी जी के चरना विंद में आत्मज प्रणाम करता हू
ॐ महादेव्यै च विद्ये विष्णुपत्नी च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात

श्री माँ के असंख्य रूप व् गुण है पर माँ का मूल स्वरुप जीव का वस्तुतः कल्याण है

श्री माँ लक्ष्मी को विविद नामो  व् स्वरूपों से जाना जाता है

माँ धन लक्ष्मी
माँ धान्य  लक्ष्मी
माँ ऐश्वर्य लक्ष्मी 
माँ अधि लक्ष्मी
माँ विजया लक्ष्मी
माँ गज लक्ष्मी
माँ वीर लक्ष्मी व्
माँ संतान लक्ष्मी


सभी देवता एक मत से गणपति की पूजा उपरांत श्री माँ लक्ष्मी की उपासना करते है

देवता ही नहीं स्वयं भगवान् विष्णु भी बहुत प्रकार से श्री श्री लक्ष्मी उपासना को रूप देते है

सृष्टि के पालन में श्री माँ लक्ष्मी ही भगवान् विष्णु की परम सहायक है

लक्ष्मी हीन जीव की कल्पना मात्र नीरस स्वरुप को ही प्रगट करती है

लक्ष्मी युक्त जीवन वैभव युक्ति का परिपूर्ण सूचक है,

लक्ष्मी के अभाव में जीव जीवन यात्रा को पूर्ण रूप  से सार्थक नहीं कर सकता,

ऋषि मुनि भी लक्ष्मी पूजन के उपरांत ही योग बल के धनि होते  है  जो ब्रह्म प्राप्ति का मूल साधन है

पोष माह की सक्रांति में रजा मनु ने लक्ष्मी पूजन कर अपने मूल तत्व को प्राप्त किया

चैत्र माह में भगवान् श्री हरी विष्णु ने लक्ष्मी पूजन कर सृष्टि को रूप दिया व् तभी से कार्तिक माह में लक्ष्मी पूजन को गति प्रदान की, जो अनंत फल दाई  है

ब्रह्मा जी ने भद्र पद माह शुक्ल पक्ष में लक्ष्मी पूजन कर ज्ञान से स्वयं को परिपूर्ण किया व् लामी पूजन की गति को सर्वमय  रूप दिया

देव ऋषि नारद ने हर माह की लक्ष्मी पूजा कर भगवान् श्री हरी विष्णु का सामीप्य प्राप्त किया

शिव भक्त कुबेर ने कार्तिक लक्ष्मी पूजन कर धन पति कुबेर का पद प्राप्त किया

पञ्च पांडव लक्ष्मी पूजन कर ही कृष्ण कृपा के पात्र  हुए

देव राज इन्द्र ने लक्ष्मी पूजन कर अमरावती को प्राप्त किया था

देव राज इन्द्र ने लक्ष्मी पूजन पूजन कर वैभव की परिपूर्ण सीमा शुची को प्राप्त किया था

लक्ष्मी पूजन ही श्री हरी विष्णु प्राप्ति का अचूक व् सुगम साधन है

जीव की मूल संज्ञा की अधिष्ठित देवी लक्ष्मी की शरण में आकर ही जीव स्वयं का सामीप्य प्राप्त करता है,

श्री श्री भगवती लक्ष्मी भगवान् विष्णु की अर्धांगिनी,  अध्याशक्ति  व् वैभव की अधिष्ठित देवी है

श्री लक्ष्मी जी का उद्गम समुद्र मंथन के 14 रत्नों के रूप में हुआ था पर श्री लक्ष्मी जी अदि स्वरुप व् स्वयं में अनंता है

दिनों में शक्रवार महालक्ष्मी के  वार  रूप में जाना जाता है

पक्षों में शुक्ल पक्ष ही ग्राह्य है यद्धपि दिवाली पूजन अमावस्या  को होता है क्यों की यह साधारण पूजा नहीं अतार्थ विशेष साधना का दिन है कार्तिक अमावस्या

भाव सहित की गई पूजा परम फल दाई मानी  जाती है

धन दाई माँ लक्ष्मी मात्र धन ही नहीं, वैभव सुख समृद्धि यश कीर्ति व् सहवास के सुख को भी सत्मय रूप देती है
धन हीन जीवन की कल्पना  भी दुःख दाई होती है  धनमय जीवन ही सत्यम शिवम् सुन्दरम की गति को प्राप्त होता है

धन के सदुपयोग से ही माँ लक्ष्मी की असीम  कृपा प्राप्त होती होती है

श्री माँ सदेव ही शुभ लाभ की दात्री है


नमोअस्तुते महामाये श्री पीठे सुरपूजिते
शंख चक्र गदाहस्ते महालक्ष्मी नमोअस्तुते

पद्मासन स्थिते देवी महा लक्ष्मी स्वरूपिणी
सर्व पाप हरे देवी महालक्ष्मी  नमोअस्तुते

स्वेताम्बर धरे देवी नाम्नालाद्कार भूषिते
जगास्थिते जग्तामा महालक्ष्मी  नमोअस्तुते


हे विश्व प्रिये देवी श्री लक्ष्मी जी  आप ही
 पधनना
पद्यनि
पद्यावहिनी
पद्यप्रिया
पद्यवल  है


हे विश्व प्रिये देवी लक्ष्मी जी आप ही सभी को धन वैभव सौभाग्य संपन्नता प्रदान करने वाली श्री माँ है

हे विश्व प्रिये देवी श्री लक्ष्मी जी आप ही समस्त कामनाओ को पूर्ण करने वाली वाली करुणामई माँ है

हे विश्व प्रिये देवी श्री लक्ष्मी जी आप ही
अग्नि धन
वायु धन
सूर्य धन
जल धन
बृहस्पति धन
वरुण धन है


हे विश्व प्रिये देवी श्री लक्ष्मी जी आप ही भगवान् विष्णु कि धर्मपत्नी है आप ही छमा रूपा है आप ही सबकी सुहृद्य है

हे विश्व देवी श्री लक्ष्मी जी आप चन्द्र प्रभा सदृश है आप ही सूर्य सदृश प्रकाशवान है आप ही अग्नि सदृश आप ही ही तेनो कि संयुक्त आभा है

हे विश्व प्रिये श्री देवी लक्ष्मी जी आप ही भक्तो को श्री, तेज, आयु, आरोग्य, धन धान्य पशु व् बहु पुत्र लाभ देने वाली करुणामई माँ है





 जय महालक्ष्मी माँ

विष्णु विष्णु विष्णु

भगवान् श्री हरि विष्णु की जय



Jai Mahamaya, Jai Mahalaxmi Maa,

The abode of fortune that is worshiped by the Devas, obeisance to you

Terror to demons, remover of miseries, obeisance to you
Knower of all, giver of all boons, a terror to all wicked, remover of sorrows, obeisance to you
Giver of success and intelligence, an indicator of worldly pleasures and liberation, obeisance to you
 Primeval Energy that without beginning and the end, born of yoga, obeisance to you
O Devi, we bow before you, who are yourself a good fortune in the dwellings of the virtues and ill fortune in those of the vicious, intelligence in the hearts of the learned, faith in the hearts of the good, and modesty in the hearts of the high-born, may you protect the universe,

  Obeisance to you Mother, Please accept my humble homage







I resort to Mahalakshmi, the destroyer of Mahisasura who is seated on the lotus, is of the complexion of the coral, and holds a rosary, axe, mace, arrow, thunderbolt, lotus, bow, pitcher, rod, shakti, sword shield, conch, bell, trident, noose, and the discus Sudarshan,

विष्णु विष्णु विष्णु
विष्णु विष्णु विष्णु

विष्णु विष्णु विष्णु
भगवान् श्री हरि विष्णु की जय